Friday, 5 December 2008

घायल एन. एस. जी. कमांडो की हॉस्पिटल में कोई सुध लेने वाला भी नहीं


मुंबई में हुए आतंकवादियों के हमले में घायल हुए एनएसजी के एक अफसर कैप्टन ए. के. सिंएनएसजी कैप्टन ए. के. सिंह ह को इस बात का अफसोस है कि वह गोली खाकर मर क्यों नहीं गए।
एनएसजी का यह जांबाज अधिकारी 27 नवम्बर को ओबेरॉय होटेल में आतंकवादियों से लोहा लेने के लिए घुसा था। उन्हें भनक लगी थी कि 18 वीं मंजिल पर एक कमरे में आतंकवादी हैं। एनएसजी के कमांडोज़ ने दरवाजे को विस्फोट से उड़ा दिया। लेकिन कैप्टन ए. के. सिंह कमरे के भीतर घुसकर कार्रवाई करने ही वाले थे कि आतंकवादियों ने ग्रेनेड फेंक दिया।
कैप्टन सिंह उस धमाके की चपेट में आ गए और पूरे शरीर पर छर्रे लगने के कारण वह बेहोश हो गए। उन्हें बॉम्बे अस्पताल लाया गया जहां उनके शरीर में धंसे छर्रे निकाल दिए गए। सिर्फ एक छर्रा नहीं निकल पाया जो बायीं आंख में चला गया था। मुंबई हमले से निपटने के लिए लगाए गए एनएसजी के कमांडो में से एक अधिकारी मेजर संदीप उन्नीकृष्णन शहीद हो गए जबकि घायल कैप्टन सिंह की अब कोई सुध लेने वाला नहीं है।
एनएसजी की टीम दिल्ली लौट गयी और कैप्टन सिंह अस्पताल में हैं। उनकी आंख से अब भी खून बह रहा है। उनकी आंख को इस कदर नुकसान पहुंचा है कि अब कोई दानदाता भी पुतली दे दे तब भी ठीक नहीं हो सकती। कैप्टन सिंह के एक मित्र ने बताया कि यह अधिकारी बेहतर इलाज चाहता है और वह सेना में वापस जाकर सेवाएं देने की इच्छा रखता है।
लेकिन उन्हें तसल्ली देने के लिए एनएसजी का भी कोई अधिकारी मौजूद नहीं है। उनके माता-पिता को सूझ नहीं रहा है कि वे करें तो क्या करें। सेना की जिस बटालियन से यह अधिकारी एनएसजी में आया था, उसके कमांडिंग आफिसर ने उनसे मुलाकात तक करना जरूरी नहीं समझा। एक अधिकारी के अनुसार जब इस मामले को सेना के शीर्ष अधिकारी की जानकारी में लाया गया तो उन्होंने कुछ मदद करने के बजाए यह हिदायतें जारी कर दीं कि वह मीडिया को इंटरव्यू न दें और कोई बयान भी जारी न करें।
सेना के एक अधिकारी ने बताया कि मजबूत कद काठी के कैप्टन ए. के. सिंह ने एनएसजी में जाने की इच्छा जाहिर की थी और उन्हें इसी साल वहां भेजा गया था।

Wednesday, 3 December 2008

आज मनमोहन को एक जोरदार थप्पड़ जड़ा है जरदारी ने

नहीं सौंपेंगे आतंकवादी : जरदारी
पूरे देश की जनभावना में आए उबाल को देख कर भारत सरकार ने पाकिस्तान को २० आतंकवादियों की सूची सौंपी थी, की पाकिस्तान जल्द से जल्द इन आतंकवादियों को भारत को सौंपे और लीजिये ये है पाकिस्तान के राष्ट्रपति - जरदारी का जवाब : की पाकिस्तान इन आतंकवादियों को भारत को नहीं सौंपेगा और सबूत मिलने पर वो अपने देश की अदालतों में उन पर मुक़दमा चलाएगा (हर कोई जनता है की न तो उनकी अदालत इन सबूतों को मानेगी और न ही आतंकवादियों का कुछ होगा)
मनमोहन सिंह जी, देख लीजिये निकल गयी न हवा आपकी गीदड़ भभकी की. अब तो शेखी बघारना बंद कीजिये और चूडियाँ पहन कर अपने बंगले में जाकर खाता-बही संभालिए. ये राज-नीति, विदेश-नीति और कूट-नीति आपके क्या आपके अगल-बगल रहने वाले सभी नाकारा मंत्रियों के भी बस के बाहर की चीज है.

Tuesday, 2 December 2008

महाराष्ट्र पुलिस - आपके भरोसे के रक्षक

महाराष्ट्र पुलिस के आधिकारिक आंकडें :
मुंबई में पुलिस बल के पास कुल हथियार - 577
राज्य के बाकी बचे भाग में पुलिस के पास कुल हथियार - 1,644
इस प्रकार राज्य के पुलिस बल में 1.8 लाख की फोर्स हेतु गृह विभाग के पास 2,221 हथियार है.
हथियार चलाने की ट्रेनिंग पिछले दस सालों से नहीं दी जा सकी.
कारण - फायरिंग रेंज की अनुपलब्धता

राज्य में ऐसे कई कांस्टेबल है, जिन्होंने भर्ती के बाद से आज तक प्रैक्टिस के लिए भी फायरिंग नहीं की. लेकिन फ़िर भी इस पुलिस का नारा है :
महाराष्ट्र पुलिस - आपके भरोसे के रक्षक

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है

खिन्न हूँ... जानता हूँ आप भी और हम सभी देशवासी. अब कुछ भी बोलने की हालत में नहीं हैं हम सब. मुंबई के घाव अभी-अभी मिले थे कि आसाम फ़िर से छलनी हो गया. मेरे देश को जो चाहे, जब चाहे, जैसे चाहे नोचता है, रगड़ता है, मसलता है, ताजा जख्मों पर नमक डालकर शरीर को लहरा देता है. एक आम आदमी इस दर्द को महसूस कर सकता है, लेकिन जिन पर देश कि जिम्मेदारी है या तो उनकी पैंट गीली हो गयी है या किंकर्तव्यमूढ़ हो गए है. अरे कायरों, कुछ तो समझो दुनिया के इशारे. सुनो क्या कहता है- बराक ओबामा? क्या कह रहे है दुनिया के बाकी नेता?

प्रत्येक देश को यह हक़ है कि वो अपने देश और देश-वासियों कि रक्षा करने के लिए आतंकियों को उनके बिल से खदेड़ कर मारे. ये तो जंग है बेवकूफों, अपनी धरती पे लडोगे तो यूँ ही मारे जाते रहेंगे भारत-वासी. जंग लड़ो - वहां जहाँ वे चूहे ट्रेनिंग लेते है. उड़ा दो उनके ट्रेनिंग कैंप. आतंकियों के ट्रेनिंग कैंप उड़ने पर विश्व की ताकतें तो कुछ कहेंगी नही, शाबासी भले मिले कि आतंक की विश्वव्यापी जंग में एक और मर्द साथ आया. हाँ अगर तुम, अपने दामादों (अरब देशों) कि फिक्र कर रहे हो, तो अलग बात है.
लोकतंत्र है, मजबूरी है जनता की, कि चुने गए नाकाबिल लोगों को हटाने का कोई रास्ता संविधान ने नहीं दे रखा है अन्यथा लोग आज इतना मजबूर नहीं होते. अगले आम चुनावों का इन्तेजार करना मुश्किल है, तब तक पता नहीं कितने और मासूम मारे जायेंगे.
शायद इस देश को एक और जे.पी. की जरुरत है जो फ़िर से यह नारा बुलंद करे -
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है.

आज किसी भी राजनेता के चेहरे से जे.पी. की झलक तक नहीं मिलती, क्या कोई मसीहा अवतार लेने वाला है या अब हम सब अपनी-अपनी बारी का इन्तेजार करें. आसाम के बाद कहाँ ?

- अनुराग

Monday, 1 December 2008

निर्दोषों की मौत की जवाबदेही इन पर भी है -

निर्दोषों की मौत की जवाबदेही इन पर भी है -
एम्. के. नारायणन - नेशनल सिक्यूरिटी एडवाईजर
पी. सी. हल्दर - डाईरेक्टर, आई. बी.
मधुकर गुप्ता - गृह सचिव
अशोक चतुर्वेदी - रा. प्रमुख
आर. ऍफ़. कोंट्रेक्टर - डी. जी. , कोस्ट गॉर्ड

हमारी रक्षा की जवाबदेही थी इन पर, अगर ये नाकाम नहीं होते, तो इतने निर्दोष नहीं मारे जाते.
क्या इन पर भी कोई कार्यवाही होगी?

शहीद मेजर उन्नीकृष्णन के घर की तलाशी पुलिस के स्निफर कुत्तों से ?

ये ख़बर पढ़ कर ही मन शर्म से डूब गया है. जिस अमर शहीद ने इस देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर दी. केरल के सी.एम. उनके पिता से मिलने घर आने वाले थे, उससे पहले पुलिस, स्निफर कुत्तों के साथ शहीद उन्नीकृष्णन के घर की तलाशी लेने पहुँची. शहीद उन्नीकृष्णन के पिता काफी विचलित थे उन्होंने कहा की उन्हें किसी नेता का दिलासा नही चाहिए और उन्होंने सी.एम. से मिलने से इंकार कर दिया.

पूरी ख़बर टाईम्स ऑफ़ इंडिया और रेडिफ की वेब साईट पर भी उपलब्ध है, पढने के लिए नाम पर दी गयी लिंक पर क्लिक करें.

Saturday, 29 November 2008

बड़े शहरों में एक-आध ऐसे हादसे होते रहते है

महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री और राज्य के गृह-मंत्री का बयान :
बड़े शहरों में एक-आध ऐसे हादसे होते रहते है
वो ५००० लोगों को मरने आए थे, लेकिन हमने कितना कम नुकसान होने दिया
rediff.com की पूरी न्यूज़ पढने के लिए क्लिक करें

Thursday, 27 November 2008

उन्होंने भारत को जंग में हरा ही दिया

अपने ड्राइंग रूम में बैठ कर भले ही कुछ लोग इस बात पर मुझसे इत्तेफाक न रखे मुझसे बहस भी करें लेकिन ये सच है उन्होंने हमें हरा दिया, ले लिया बदला अपनी पिछली सभी हारों का और अपने नाकाबिल-नाकारा नेताओ के भरोसे चलने वाले इस देश के हम आम नागरिक हताश और बेबस अपने देश की जलती इज्जत की चिताओ से उठता हुआ धुआं अपने-अपने टीवी की स्क्रीन पर देख रहे हैं. हम सभी भारतीय यह जानते ही थे की मुंबई पर हमला कौन कर सकता है किंतु देश से अधिक अपने वोट बैंक की चिंता करने वाले नेताओ को कम से कम प्राप्त सबूतों के आधार पर यह मानना होगा और स्पष्ट रूप से यह कहना होगा की यह कायराना कार्यवाही कोई आतंकवादी हमला नही बल्कि सोची समझी रणनीति और अपने संसाधनों तथा अपने ही वहशी दरिंदो को भारत में भेजकर पाकिस्तान द्वारा की गयी एक सैन्य कार्यवाही है जिसको पाकिस्तानी सेना, सरकार और आई.एस.आई. ने बिल्कुल प्लानिंग के साथ अंजाम दिया और अपने नापाक इरादों में कामयाब भी हुए - उन्होंने न केवल हमारी अर्थव्यवस्था के केन्द्र को निशाना बनाया बल्की पूरे विश्व के सामने हमें नीचा दिखाया. उन्होंने साबित कर दिया की वो जब चाहे जहाँ चाहे और जिसे चाहे मार सकते हैं. वो हमले करते रहेंगे और हमारे प्रधान-मंत्री और गृह-मंत्री सिर्फ़ बयान, सांत्वना और कार्यवाही के झूठे दिलासे अपने देशवासियों को देते रहेंगे. आज प्रधान-मंत्री मनमोहन सिंह ने कहा की इसमे पड़ोसी देश का हाथ हो सकता है और वे उनसे बात करेंगे. हाँ, बिल्कुल सच है, वे सिर्फ़ बात ही कर सकते है, कार्यवाही करने के लिए तो जिगर चाहिए. आज बिना गुर्दा वाले नेता ही इस देश के प्रमुख पदों पर बैठे हुए है. इन्होने देश की जनता को मरने के लिए छोड़ दिया है. इनकी अपनी सुरक्षा पर करोड़ों रूपये खर्च होते हो, आम-जनता से इनका कोई वास्ता नही. अब जनता को इनके दिखावे के आँसू नही चाहिए, इन्हे तो चूड़ी पहन कर अपने बंगले में बैठना चाहिए. काश अभी कोई ऐसा प्रधान-मंत्री होता जो पाकिस्तानी सेना के ठिकानों को हमारी वायु-सेना से नेस्तनाबूद करवा देता ताकि एक स्पष्ट संदेश पाकिस्तान के हुक्मरानों को मिले और वे फ़िर कभी ऐसा दुस्साहस करने की कल्पना भी न कर सके.
- अनुराग, कोलकाता